मेरा मन......
मै खुद में सिड रहा हूँ,
अपने मे मेरा मन मचल रहा है,खोज रहा हूँ ।
अपने आप को परिंदो में सारा जग में खुम रहा हूँ।
समाया हुआ था अपने आप मे लेकिन एक छोटी सी दुनिया अपने मे खोज रहा हूँ।

में रहकर भी सभी में, सबको खोज रहा हु
अपने मे बदल रहा हु दुनिया को जग में निहार रहा हूँ।
मेरा मन उदासी में दृढ रहा है और में अपने मे करवट बदल रहा हूँ।
रुबाइयाँ मेरी अब वो न रही जो मेरी थी अब वो मुझे छोड़ रही है और अपने मे मजबूर हो रहा हूँ।
सिलग सी मेरी आँखें मन को सिलगा रही है।
मेरा एक रिक्त बचकर मेरे पास आ रहा है जिसका अंत मे कर रहा हूँ।
अपने आगे की बातें सता रही है मुझे,रातें मेरी डूब रही है।

क्या पता है मुझे मेरे सिलसिला रुक रहा है।
आगे कुछ नही लिखने मन कर रहा 
सिर्फ मन मेरा बोल रहा,यह मौसम एक बहार बन रहा है,
मेरा मन सिलग रहा है।
बन्द करना है मुझे अपनी बातों को,
थोड़ा समय ले रहा हु पर अपने जग में अपना ढंग घोल रहा हूँ।

न पसंदीदा बन रहा हूँ,ऐसा क्यों कर रहा हूँ इनसब से खुद में निशब्द बन रहा हूँ।
मेरा होना सिर्फ एक सच्चाई है मेरा बोलना नही पसंद क्योंकि में अपना तरत खोज रहा हूँ
एक नया तर लोगों के लिए समा रहा हु बातें मेरी गुम है लेकिन उसकी बातें हमेशा सच है,
शोर करना आता नही परंतु शोर अपने मे हो रहा है।

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