क्यों बुझु

आज में देखता हु की कई जगहों पर सिर्फ सभी लोग हार मान ले रहे है सभी चीजो से,उनमे एक इस्तीफा की भावना आ रही है कि वे सभी चीजो पर से अपना साथ छोड़ दे रहे है अपने काम मे ध्यान नही दे रहे है,जो कि नकारात्मक कि भावना आ रही है सब मे, और आज यह बातों का जिक्र युवा पीढ़ी पर ही प्रकाशित होता दिख रहा है। जिस प्रकार से वे कार्य का उलंघन कर रहे है।।
                        जिस तरह दिप जलता है और बुझता है तो एक अरोशनी कि प्रक्रिया जागती है उसी प्रकार आज का समय बनता जा रहा है कि आज सभी बुझते जा रहे है। लेकिन आखिर क्यों वे बुझते जा रहे ? आज हर जगह पर हर कोई के तकलीफों के लिए हर एक उपाय है जो कि ढूढने कि जरूरत नही है क्योंकि उसका उपाय हमारे ही पास है,सिर्फ उस पर साधना की जरूरत है।
                          सिर्फ हम हार न माने यह बात हमको आपने आप मे एक जीत की राह दिखा देती है। हम दुनिया मे क्यों न अकेले पड़ जाएं लेकिन हम खुद को कभी न अकेले होने दे और अपने आप मे जीत कर दिखाए। आखिर इस दुनिया मे हम अपने आप मे कुछ है यह हम साबित करके दिख दे।
           इस लिए हम कभी बहु बुझे न बल्कि जिस तरह दिप लोंके अपने रूह के इशारों पर चलती है उसी तरह हम भी बन जाये। जिस से की हर तकलीफ में हम अपने आप को अपना रीढ़ का मजबूत दिवार बना ले। उसके लिए एक दिप कभी बुझता नही है उसी तरह हम हार न मान कर अपने आप को मज़बूतियाँ दे और बढ़ते चले सिर्फ जिस राह कि हमे  इंतज़ार है उसकी पूरी ललकार हम गुहार कि उपासना करते रहे।
                                                        -अक्षत मिश्रा                     
              
                 

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